Saturday, April 7, 2012

He was much unique a personalty:

अवाक् रह गया जब बिशम्भर ने यह सूचना दी कि चफरिया (ओरीपुरवा) में कल रात श्रीकांत भैय्या नहीं रहे. वे हमारे बड़े मामा के बड़े सुपुत्र थे और लम्बे समय तक बहराइच में इलाज कराकर घर वापस लौटे थे. दुखद सूचना ने मुझे पूरी तरह झकझोर दिया और उनका करीब आठ दशक का ज्वलंत जीवन एक छाया वृत्त की तरह मेरी आँखों के सामने छा गया. यह सच्चाई कि हर किसी का जीवन नश्वर है और अन्ततः हर किसी की यही निश्चित गति है मात्र सांत्वना देने का एक उपकरण है क्योंकि इसका कोइ ब्योहारिक स्वरुप नहीं होता. अनश्वर कोइ नहीं है और मैं भी किन्तु मात्र अपनी सांत्वना के लिए मैं दिवंगत आत्मा के दीर्घकालीन क्र्तत्व एवं उसके आत्मीयता जन्य स्वरुप  को झुठलाने अथवा भुलाने के पक्ष में नहीं हूँ, वरनु उनसे जुड़ी हुई स्मृतियों को आत्म्सातु करना आवश्यक समझता हूँ भले ही वोह कष्टकारक ही क्यों न हों. जिनका जीवन शेष है वोह ऐसा कर सकते हैं. शास्वत सत्य तो यही है कि -

आये दिन जाता हूँ मैखाने की वोर 
कोई दिन होगा कि जब वापस न होंगे 
धरी रह जायेगी सपनों की गठरी 
सुपुर्दे खाक होंगे कि जल कर राख होंगे 

जीवन अपने आप में एक चुनौती है और इसे हमें स्वीकार करना ही होगा और इस चुनौती को हमें एक ध्रुव सत्य के रूप में जीवन पर्यन्त जीना होगा. क्यों न इस कार्य को हम एक अत्याज्य यथार्थ मानकर साहस पूर्वक करें. जो हमारे बीच नहीं रहे उनका जीवन हम जियेंगे और हमारे बाद हमारा जीवन वंशानुगत रूप में हमारी अगली पीढ़ियाँ जियेंगी. सृष्टी का यह विधान हमें एक अत्यंत सहज रूप में स्वीकार होना चाहिए.         

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