abhivyakti
A blog exclusively in Hindi/ Urdu
Saturday, April 27, 2013
गुनाह एक नहीं और चार कर लूँगा
हज़ार बार हजारों ज़वाल सह लूँगा
पोंछ पावूँ जो किसी ग़मज़दा के आंसूं मैं
अपने दामन की सफेदी सियाह कर लूँगा .
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