Sunday, July 15, 2012

घुल गया मैं आँसुवों की पीर बन

घुल गया मैं आँसुवों की पीर बन,
तुम मुझे पाषाण ही कहते रहे
प्राण पण से मैं समर्पित,
तुम मुझे निष्प्राण ही कहते रहे . 


Sunday, April 29, 2012

وفا کے نام پے کچھ راز زندگی کے تحت

وفا کے نام پے کچھ راز زندگی کے تحت
بڑے گناہ ہیں جنکو سنبھالتے ہیں ہم
کبیر داس تو چونر کے عیب سے تھہے بری
یہاں حقیقتن داگوں کے ڈھیر میں ہیں ہم

مگر قبول نہیں عشق بایسے ذلّت
میرے قریب جو بیٹھہوتو خوش نیت بیٹھو
مجھے زمین ن کہو آسمان کہو ن مجھے
مگرزرور مجھے ایک عدد بشر سمجھو  

Friday, April 27, 2012

قللاتے زر تو گوارا کرلیں

قللاتے زر تو گوارا کرلیں
ادھار مانگلن کچھ وقت گزارا کرلیں
مگر وفا تو کوئی مانگنے کی چیز نہیں
گر میسّر تو نظارہ کرلی
ورنہ نایاب سی فطرت سے
کنارہ کر لیں 

Tuesday, April 24, 2012

An exercise on urdu transliteration

روخ جو پلتوں توساری  بات ختم
آنکھیں اتنا نہیں دکھنگی  تب
سوال یہ ہے ک اس چتر سے مدوں کیسے 
دلے دیوار میں مدھا ہے جو

کوششوں کا کوئی حشر ن ہوا 
وقت کا کچھ بھی تو اثر ن ہوا 
رہی ہمیشہ جوان جو بھی مجھے چوٹ لگی
مجھے جو درد ملا وہ کبھی بھی کم ن ہوا    

It's quite an uneasy a mind

मन बोझिल है और अशांत भी. संघर्ष हैं कि थमने का नाम नहीं लेते और समस्याएं इतनी कि कहीं से कम नहीं हो रही हैं. स्वास्थ्य भी अपने आप में एक दुरूह समस्या है. सब कुछ मिला जुला कर चुनौतियाँ एक पहाड़ बन कर सामने खड़ी हैं. मुझे अपनी लेखनी का गुमान है एक आत्म विश्वास के साथ किन्तु यह माध्यम भी कहीं से कोई सार्थक रूप ग्रहण कर पाने में अभी तक सफल नहीं हो पाया. आशंका बनी रहती है कि कहीं मेरा आत्म विश्वास जो अभी तक बना हुआ है डगमगा न जाए. झंझावातों के बीहड़ में खो सा गया हूँ, थकान महसूस हो रही है. हमारे सभी प्रयास विफल ही क्यों हो रहे हैं. लगन, निष्ठां, संकल्प जैसे सभी माध्यमों का प्रयोग मेरे अथक प्रयासों में सदैव सम्मिलित रहा है किन्तु मेरे वर्तमान को लगा हुवा ग्रहण अभी भी अपने चरम पर है. देखना होगा कि जीवन के इस महा संघर्ष को मैं कब तक झेल पाता हूँ. 

Saturday, April 7, 2012

He was much unique a personalty:

अवाक् रह गया जब बिशम्भर ने यह सूचना दी कि चफरिया (ओरीपुरवा) में कल रात श्रीकांत भैय्या नहीं रहे. वे हमारे बड़े मामा के बड़े सुपुत्र थे और लम्बे समय तक बहराइच में इलाज कराकर घर वापस लौटे थे. दुखद सूचना ने मुझे पूरी तरह झकझोर दिया और उनका करीब आठ दशक का ज्वलंत जीवन एक छाया वृत्त की तरह मेरी आँखों के सामने छा गया. यह सच्चाई कि हर किसी का जीवन नश्वर है और अन्ततः हर किसी की यही निश्चित गति है मात्र सांत्वना देने का एक उपकरण है क्योंकि इसका कोइ ब्योहारिक स्वरुप नहीं होता. अनश्वर कोइ नहीं है और मैं भी किन्तु मात्र अपनी सांत्वना के लिए मैं दिवंगत आत्मा के दीर्घकालीन क्र्तत्व एवं उसके आत्मीयता जन्य स्वरुप  को झुठलाने अथवा भुलाने के पक्ष में नहीं हूँ, वरनु उनसे जुड़ी हुई स्मृतियों को आत्म्सातु करना आवश्यक समझता हूँ भले ही वोह कष्टकारक ही क्यों न हों. जिनका जीवन शेष है वोह ऐसा कर सकते हैं. शास्वत सत्य तो यही है कि -

आये दिन जाता हूँ मैखाने की वोर 
कोई दिन होगा कि जब वापस न होंगे 
धरी रह जायेगी सपनों की गठरी 
सुपुर्दे खाक होंगे कि जल कर राख होंगे 

जीवन अपने आप में एक चुनौती है और इसे हमें स्वीकार करना ही होगा और इस चुनौती को हमें एक ध्रुव सत्य के रूप में जीवन पर्यन्त जीना होगा. क्यों न इस कार्य को हम एक अत्याज्य यथार्थ मानकर साहस पूर्वक करें. जो हमारे बीच नहीं रहे उनका जीवन हम जियेंगे और हमारे बाद हमारा जीवन वंशानुगत रूप में हमारी अगली पीढ़ियाँ जियेंगी. सृष्टी का यह विधान हमें एक अत्यंत सहज रूप में स्वीकार होना चाहिए.         

Saturday, February 18, 2012

रुख्ह जो पलटूं तो सारी बात ख़तम .....

रुख्ह जो पलटूं तो सारी बात ख़तम
आँखें उतना नहीं दुखेंगी तब
सवाल एह है कि उस चित्र से मुदुं कैसे
दिले दीवार में मढ़ा है जो

Friday, February 17, 2012

भला मैं बात अपनी क्या करूंगा ...

भला मैं बात अपनी क्या करूंगा
मुझे फुर्सत कहाँ है आंसुओं से
घनी बरसात में जो तर बतर हो
पूछना मेरी कहानी उस सुमन से