Saturday, April 27, 2013

गुनाह एक नहीं और चार कर लूँगा 
हज़ार बार हजारों ज़वाल  सह लूँगा 
पोंछ पावूँ जो किसी ग़मज़दा के आंसूं मैं 
अपने दामन की सफेदी सियाह कर लूँगा .

1 comment:

Rahul Nigam said...

आ चल, कर ले इबादत, कुछ देर खुदा की भी
सर मेरे आया है इलज़ाम, आदमी होने का......
........आ चल, कर ले फराहम, कुछ तिनके लोगों के भी वास्ते
ग़ुम न हो जाये असर, आदमी होने का.......
........आ चल, कर ले तकसीम, अम्न और ईमान की दौलत
इल्म हो गया हैं मुझको आदमी होने का.